भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धुँधले प्रतिबिम्ब / नईम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> धुँधले प्रतिबिम्ब और का…)
 
(कोई अंतर नहीं)

09:34, 29 जून 2010 के समय का अवतरण

धुँधले प्रतिबिम्ब और काँपती लकीर ।

पीले पन्नों को जो मोड़ रहे
भीड़ को
अकेले में छोड़ रहे
धारा से कटे हुए उम्र के फ़क़ीर ।

तीन पात ढाक के लगाए हैं
जागे तो, प्रेत ही जगाए हैं -
पगड़ी से
झाँक रहे हरण किए चीर ।

नई फ़सल कौड़ी के लेखे में
गाड़ रहे अब भी
उखड़े खेमे
सीने से चिपकाए टूटी तस्वीर ।