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20:40, 30 जून 2010 का अवतरण
मेरा प्रयास बन नदिया
जग में सदा बहूँ मैं
चल सकूँ उस राह पर भी
जो सूखकर पथरा गई हो
चट्टान को भी तोड़ दूँ
जो रास्ते में आ गई हो
धीर धरे मन जोश भरे
अपनी राह गहूँ मैं
थके हुए हर प्यासे को
चलकर अपना मन दूँ, जल दूँ
टूटे-सूखे पौधों को
हरा-भरा नव-जीवन-दल दूँ
हर विपदा में, चिन्ता में
सबके साथ रहूँ मैं
आ खूब नहाएँ चिड़िया-
बच्चे, माँझी नाव चलाएँ
ले जाएँ घर-क्यारी में
अपनी फसलों को नहलाएँ
आऊँ काम सभी के बस
प्रभु से यही कहूँ मैं