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"आँख / हेमन्त कुकरेती" के अवतरणों में अंतर

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23:14, 1 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


देखने के लिए नज़र चाहिए
ठीक हो दूर और पास की तो कहना ही क्या

बाज़ार को दूर से देखने पर भी लगता है डर
मेरा घर तो बाज़ार के इतने पास है
कि उजड़ी हुई दुकान नज़र आता है

ठेठ पड़ोस का घर हो जाता है सुदूर का गृह
चीख़ता है कि उसकी कक्षा से दूर रहूँ
जब कि मेरे घर के हर कोने की है अपनी परिधि

कई बार ऐसा हुआ कि नहाने के लिए पानी लेने गया
और साबुन के भाव बिकते-बिकते बचा
यह तभी हुआ कि मैंने अपनी क़ीमत नहीं लगाय़ी
खुद को बिकने से बचाये रखना ऱोज का हादसा

दूर से दो विदेशी पैर आकर
उठाईगीरी पर उतर आते हैं अपनी नग्नता दिखाकर
उसने लड़ना मेरी मज़बूरी है या
उजागर होता है ओछापन

सोने के लिए दिनभर की नींद मुफ़्त में देनी पड़ती है मुझे
जागने के लिए सपने हैं, उनसे ही कहता हूँ
इतने हल्ले में आओगे तो कैसे सुन सकूँगा तुम्हें पहचानूँगा कैसे
वे जाने कैसे पहचान लेते हैं मुझे
किसी दिन कुचले हुए मिलेंगे मेरे सपने एक दुकान के नीचे
दूसरी पर उनका सौदा हो रहा होगा

कैसा विनिमय है चीज़ों का
गेहूँ कपास न हुआ सिन्थेटिक कपड़ा होकर बिकने लगा
बच्चे जिन बिस्कुटों के बदले राज़ी होते थे अपनी नींद तोड़ने के लिए
वे रूमाल हो गय़े
फिर भी पैण्ट इतनी ऊँची हो गयी कि भूख जितनी ढीठ
कमीज़ें इतनी महँगी कि उन्हें पहनने की ज़रूरत ही नहीं रही

आदमी भी वस्तु हो गया, देखा तो सोचा
देखने के लिए आँख चाहिए ऐसी जो पैसे के पार देख सके