भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इस गली के आख़िर में / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |संग्रह= }} <Poem> इसी गली के आख़िर में ...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=कुमार रवींद्र | + | |रचनाकार= कुमार रवींद्र |
− | + | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatNavgeet}} | |
− | < | + | <poem> |
इसी गली के | इसी गली के | ||
आख़िर में है | आख़िर में है |
11:56, 2 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
इसी गली के
आख़िर में है
एक लखौरी ईंटों का घर
किस पुरखे ने था बनवाया
दादी को भी पता नहीं है
बसा रहा
अब उजड़ रहा है
इसमें इसकी ख़ता नहीं है
एक-एक कर
लड़के सारे
निकल गए हैं इससे बाहर
बड़के की नौकरी बड़ी थी
उसे मिली कोठी सरकारी
पता नहीं कितने सेठों ने
उसकी है आरती उतारी
नदी-पार की
कालोनी में
कोठी बनी नई है सुंदर
मँझले-छुटके ने भी
देखादेखी
बाहर फ्लैट ले लिए
दादी-बाबा हैं जब तक
तब तक ही
घर में जलेंगे दिये
पीपल है
आंगन में
उस पर भी रहता है अब तो पतझर ।