भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बरगद / भारतेन्दु मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= भारतेन्दु मिश्र }} {{KKCatNavgeet}} <poem> मैं घना छतनार बरगद …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
13:07, 2 जुलाई 2010 का अवतरण
मैं घना छतनार बरगद हूँ
जड़ें फैली हैं अतल-पाताल तक।
अनगिनत आए पखेरू
थके माँदे द्वार पर
उड गए अपनी दिशाओ मे
सभी विश्राम कर
मैं अडिग-निश्चल-अकम्पित हूँ
जूझकर लौटे कई भूचाल तक।
जन्म से ही ग्रीष्म वर्षा शीत का
अभ्यास है
गाँव पूरा जानता
इस देह का इतिहास है
तोड़ते पल्लव, जटायें काटते
नोचते हैं लोग मेरी खाल तक।
अँगुलियों से फूटकर
मेरी जड़ें बढ़ती रहीं
फुनगियाँ आकाश की
ऊँचाइयाँ चढ़ती रहीं
मैं अमिट अक्षर सनातन हूँ
शरण हूँ मैं
लय विलय के काल तक।