भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुछ निशान वक़्त के / मीना चोपड़ा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुमार शुक्ल |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> '''मेरे बचप…)
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
दूर कहीं सजदों में झुकी घंटियों की गूँज  
 
दूर कहीं सजदों में झुकी घंटियों की गूँज  
 
बाँसुरी की धुन में लिपट कर चोटियों से  
 
बाँसुरी की धुन में लिपट कर चोटियों से  
धीमे—धीमे उतरती सुबह की सुरीली धूप!
+
धीमे—धीमे उतरती सुबह की सुरीली धूप !
  
 
पानी में डुबकियाँ लगाती कुछ मचलती किरणें
 
पानी में डुबकियाँ लगाती कुछ मचलती किरणें
पंक्ति 21: पंक्ति 21:
 
ज़िन्दगी की चलती नौका
 
ज़िन्दगी की चलती नौका
 
रात की झिलमिलाहटों में तैरती चुप्पियों की लहरें
 
रात की झिलमिलाहटों में तैरती चुप्पियों की लहरें
किनारों से टकराकर लौटती जुगनुओं की वही पुरानी चमक!
+
किनारों से टकराकर लौटती जुगनुओं की वही पुरानी चमक !
  
 
उम्मीदों की ठण्डी सड़क पर हवाओं से बातें करती
 
उम्मीदों की ठण्डी सड़क पर हवाओं से बातें करती
पंक्ति 31: पंक्ति 31:
 
झील की गहराई में उतरकर  
 
झील की गहराई में उतरकर  
 
नींद को थपथपाते हुए
 
नींद को थपथपाते हुए
उगती सुबह की अंगड़ाई में रम गए हैं!  
+
उगती सुबह की अंगड़ाई में रम गए हैं !  
 
</poem>
 
</poem>

11:43, 4 जुलाई 2010 का अवतरण

मेरे बचपन और जन्मस्थल नैनीताल के बारे में एक कविता

झील से झाँकते आसमान की गहराई में
बादलों को चूमती पहाड़ों की परछाईयाँ
और घने पेड़ों के बीच फड़फड़ाते अतीत के बुझते चेहरे
झरनो के झरझराते मुख से झरते मधुर गीत-संगीत
हवाओं पर बिखरी गेंदे के फूलों की सुनहरी ख़ुशबू
दूर कहीं सजदों में झुकी घंटियों की गूँज
बाँसुरी की धुन में लिपट कर चोटियों से
धीमे—धीमे उतरती सुबह की सुरीली धूप !

पानी में डुबकियाँ लगाती कुछ मचलती किरणें
और उन पर छ्पक—छपक चप्पूओं से साँसे लेती
ज़िन्दगी की चलती नौका
रात की झिलमिलाहटों में तैरती चुप्पियों की लहरें
किनारों से टकराकर लौटती जुगनुओं की वही पुरानी चमक !

उम्मीदों की ठण्डी सड़क पर हवाओं से बातें करती
किसी राहगीर के सपनों की तेज़ दौड़ती टापें
पगडंडियों को समेटे कदमो में अपने
पहुँची हैं वहाँ तक—
जहाँ मंज़िलों के मुका़म
अक़्सों में थम गए हैं
झील की गहराई में उतरकर
नींद को थपथपाते हुए
उगती सुबह की अंगड़ाई में रम गए हैं !