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12:02, 4 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

वक़्त की सियाही में
तुम्हारी रोशनी को भरकर
समय की नोक पर रक्खे
शब्दों का काग़ज़ पर
क़दम-क़दम चलना।

एक नए वज़ूद को
मेरी कोख में रखकर
माहिर है कितना
इस क़लम का
मेरी उँगलियों से मिलकर
तुम्हारे साथ-साथ
यूँ सुलग सुलग चलना