"युद्ध आयोजित होते हैं / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> '''युद्ध आयो…) |
छो () |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:34, 5 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
युद्ध आयोजित होते हैं
तब, युद्ध होती रही होंगी
आपद, अनिश्चित दुर्घटनाएं,
मज़बूरियाँ झोंक देती रही होंगी युद्धाग्नि में
जिसकी तपिश सोख लेती थी
इतिहास के आंसू,
मौनधारण कर लेती थी
इतिहासकार की विलापरत कलम
अब, युद्ध की नींव डालने से पहले
लाभा की बहुमंजिली इमारत
खड़ी कर दी जाती है,
युद्ध के अंजाम तक पहुँचने से पहले
उसकी आयु बता दी जाती है,
युद्ध का एजेंडा लाने से पहले
उसकी उपलब्धियां गिना दी जाती हैं,
युद्ध-तालिका बनाने से पहले
हताहतों की दाशमिक गणना
कर ली जाती है
बेशक! इस युद्ध-नीति की पहेली से
विधाता भी हतप्रभ और व्याकुल है,
क्योंकि युद्ध खेले जाने लगे हैं--
व्यावसायिक पंडालों में,
गाजे-बाजे सहित मंचित होने लगे हैं--
फिल्मी कैमरों में
अंकित होने के लिए
हां, युद्ध प्रायोजित होते हैं,
परदों पर चलचित्रित होने से पहले
निर्माताओं-प्रायोजकों की
जेब गरम कर देते हैं.