"इतना कुछ होता है यहां / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ''' इतना कु…) |
|||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
''' इतना कुछ होता है यहां ''' | ''' इतना कुछ होता है यहां ''' | ||
+ | |||
+ | जबकि कोई हुक्मरान | ||
+ | डिनर कर रहा होता है | ||
+ | व्हाइट हाउस में | ||
+ | तब, क्या होता है यहां? | ||
+ | |||
+ | न, न, कूड़ेदान में दुबका | ||
+ | यह आदम जीव | ||
+ | क्या बता पाएगा | ||
+ | सूचना क्रान्ति का विगुल बजाते | ||
+ | इस महान राष्ट्र का भविष्य? | ||
+ | अरे, तुम यमुना-किनारे | ||
+ | मत पूछो-- | ||
+ | कम से कम सौ सालों तक | ||
+ | कि यह देश किस शिखर पर | ||
+ | उड़ बैठेगा | ||
+ | इस सदी के बाद के | ||
+ | महापरिवर्तनकारी दौर में, | ||
+ | जबकि विदेशों में | ||
+ | अपने नामूनेदार जिस्म की नुमाइश लगातीं | ||
+ | भारतीय विश्व सुंदरियां | ||
+ | ऐलान करती जा रही हैं | ||
+ | कि नून-तेल से | ||
+ | बहुत ऊपर उठ चुका है यह देश, | ||
+ | यहां रोटियों से नहीं | ||
+ | लोग पेट भरते हैं अघा-अघा | ||
+ | गली-गली मचलती सुन्दरता से | ||
+ | |||
+ | और तंगहाली के दिन लड़ गए हैं, | ||
+ | यहां, कोई नहीं है | ||
+ | भूखा, नंगा, बेघर | ||
+ | बदनसीब, बदहवास, | ||
+ | क्योंकि तिलस्मी विश्व्सुन्दरियों ने | ||
+ | बना दिया है बेशक, हमें | ||
+ | हृष्ट, पुष्ट, तुष्ट, | ||
+ | अब जिम्नेशियम जा रहे | ||
+ | बूटीक, ब्यूटीपार्लर में | ||
+ | उम्र गुज़ार रहे | ||
+ | युवक-युवतियां | ||
+ | बनाएंगे इस कुरूप राष्ट्र को | ||
+ | गन्धर्वदेश और अप्स रा लोक | ||
+ | |||
+ | धत! | ||
+ | कितना है बकवास | ||
+ | परियोजनाओं का विलाप? | ||
+ | देखो--उनके वैभव-विलास | ||
+ | फाइलों में | ||
+ | प्रचार पत्रिकाओं में | ||
+ | जहां वे बेतहाशा गाते जा रहे हैं | ||
+ | मुक्त-उन्मत्त धुन में | ||
+ | राष्ट्र का विकास-गीत | ||
+ | |||
+ | इस कम्प्यूटर रेस में | ||
+ | बातें मत करो आवेश में-- | ||
+ | आनन-स्पर्श के मोहताज़ होठों की | ||
+ | क्योंकि नहीं रहा आर्यावर्त्त दीन-देहाती, | ||
+ | कायांतरित होता जा रहा है यह | ||
+ | करिश्माई ख़्वाब-गाह में तत्त्वर | ||
+ | |||
+ | हां, अब तो कर लो यकीन | ||
+ | कि |
13:37, 8 जुलाई 2010 का अवतरण
इतना कुछ होता है यहां
जबकि कोई हुक्मरान
डिनर कर रहा होता है
व्हाइट हाउस में
तब, क्या होता है यहां?
न, न, कूड़ेदान में दुबका
यह आदम जीव
क्या बता पाएगा
सूचना क्रान्ति का विगुल बजाते
इस महान राष्ट्र का भविष्य?
अरे, तुम यमुना-किनारे
मत पूछो--
कम से कम सौ सालों तक
कि यह देश किस शिखर पर
उड़ बैठेगा
इस सदी के बाद के
महापरिवर्तनकारी दौर में,
जबकि विदेशों में
अपने नामूनेदार जिस्म की नुमाइश लगातीं
भारतीय विश्व सुंदरियां
ऐलान करती जा रही हैं
कि नून-तेल से
बहुत ऊपर उठ चुका है यह देश,
यहां रोटियों से नहीं
लोग पेट भरते हैं अघा-अघा
गली-गली मचलती सुन्दरता से
और तंगहाली के दिन लड़ गए हैं,
यहां, कोई नहीं है
भूखा, नंगा, बेघर
बदनसीब, बदहवास,
क्योंकि तिलस्मी विश्व्सुन्दरियों ने
बना दिया है बेशक, हमें
हृष्ट, पुष्ट, तुष्ट,
अब जिम्नेशियम जा रहे
बूटीक, ब्यूटीपार्लर में
उम्र गुज़ार रहे
युवक-युवतियां
बनाएंगे इस कुरूप राष्ट्र को
गन्धर्वदेश और अप्स रा लोक
धत!
कितना है बकवास
परियोजनाओं का विलाप?
देखो--उनके वैभव-विलास
फाइलों में
प्रचार पत्रिकाओं में
जहां वे बेतहाशा गाते जा रहे हैं
मुक्त-उन्मत्त धुन में
राष्ट्र का विकास-गीत
इस कम्प्यूटर रेस में
बातें मत करो आवेश में--
आनन-स्पर्श के मोहताज़ होठों की
क्योंकि नहीं रहा आर्यावर्त्त दीन-देहाती,
कायांतरित होता जा रहा है यह
करिश्माई ख़्वाब-गाह में तत्त्वर
हां, अब तो कर लो यकीन
कि