भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बदहाली / नरेन्द्र जैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र जैन |संग्रह=काला सफ़ेद में प्रविष्‍ट …)
 
(कोई अंतर नहीं)

02:59, 10 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

एक खुली हुई धारदार
बडी सी कैंची
आसमान से गिर रही है

कैंची के हमले से
अपने को बचाता हुआ
यह दर्ज़ी एक पैर पर उछल रहा है
उसके रोज़गार की सारी चीज़ें
यहाँ उसके ख़िलाफ़ युद्धरत हैं
बहुत सी सुईयाँ, तरह तरह के
धागों के जाल
बटन और नापने के फ़ीते
उस पर वार करने के लिए आमादा हैं

दर्ज़ी के चेहरे से टपक रहा है पसीना
और उससे ज़्यादा भय
उसके वस्‍त्र मैले कुचैले हैं
और उसके चारों तरफ़ दूर-दूर तक
बस ज़मीन खाली है

व्‍यवसाय की बदहाली
शायद यहीं बयान हो रही है।