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10:08, 16 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
मेरी निगाहों को ही पहनो कभी
जानो कि इन सबसे वजनी वस्त्रों को पहनना
कितना सल्लज बनाता है तुम्हें
कि कितनी मारक होती है लज्जा
कि इससे बचने की ख़ातिर
किस तरह मुझें
खींचने पडते हैं तुम्हारे वस्त्र
ख़ुद को अंधा और तुम्हें
नंगा करना पडता है
कितनी बार...