भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नीरा के लिए / सुनील गंगोपाध्याय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=सुनील गंगोपाध्याय }} Category:बांगला <poem> नीरा! तुम …)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<poem>
 
<poem>
 
नीरा! तुम लो दोपहर की स्वच्छता
 
नीरा! तुम लो दोपहर की स्वच्छता
लो रात की दूरियां
+
लो रात की दूरियाँ
 
तुम लो चन्दन-समीर
 
तुम लो चन्दन-समीर
लो नदी किनारे की कुंआरी मिट्टी की िस्नग्ध सरलता
+
लो नदी किनारे की कुँआरी मिट्टी की स्निग्ध सरलता
 
हथेलियों पर नींबू के पत्तों की गंध
 
हथेलियों पर नींबू के पत्तों की गंध
 
नीरा, तुम घुमाओ अपना चेहरा
 
नीरा, तुम घुमाओ अपना चेहरा

19:47, 16 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: सुनील गंगोपाध्याय  » नीरा के लिए

नीरा! तुम लो दोपहर की स्वच्छता
लो रात की दूरियाँ
तुम लो चन्दन-समीर
लो नदी किनारे की कुँआरी मिट्टी की स्निग्ध सरलता
हथेलियों पर नींबू के पत्तों की गंध
नीरा, तुम घुमाओ अपना चेहरा
तुम्हारे लिए मैंने रख रखा है
वर्ष का श्रेष्ठवणी सूर्यास्त
तुम लो राह के भिखारी-बच्चे की मुस्कराहट
लो देवदारु के पत्तों की पहली हरीतिमा
कांच-कीड़े<ref>नीले रंग का एक कीड़ा-विशेष</ref> की आंखों का विस्मय
लो एकाकी शाम का बवण्डर
जंगल के बीच भैंसों के गले की टुन-टुन
लो नीरव आंसू
लो आधी रात में टूटी नीन्द का एकाकीपन
नीरा, तुम्हारे माथे पर झर जाए
कुहासा-लिपटी शेफालिका
तुम्हारे लिए सीटी बजाए रात का एक पक्षी
धरती से अगर बिला जाए सारी सुन्दरता
तब भी, ओ मेरी बच्ची
तेरे लिए
मैं यह सब रख जाना चाहता हूं।

मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी

शब्दार्थ
<references/>