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"मेरी अक्ल-ओ-होश की / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर

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07:41, 19 जुलाई 2010 का अवतरण

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मेरी अक्ल-ओ-होश की सब हालते
तुमने सांचे में ढाल दी
कर लिया था मैंने अहदे कर के इश्क
तुमने बाहे फिर गले में डाल दी

यू तो अपने कसदाने दिल के पास
जाने किस-किस के लिए पैगाम है
जो लिखे जाते औरो के नाम
मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम है

ये तेरे खत तेरी खुशबू
ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल
मताए जा है तेरे
कसम की तरह

गुज़रता साल मैने
इनहे मैने गिन के रखा था
किसी गरीब की जोड़ी हुई
रकम की तरह

है मुहब्ब्त हयात की नज़र
वरना कुछ हज़्ज़त-ए-हयात नहीं
क्या इज़ाज़त है एक बात कहू
मगर खैर कोई बात नहीं