"भारतभूमि / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
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− | + | पातञ्जल ध्यान योग गीता ज्ञान कर्मयोग | |
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− | + | आयुर्वेद धनुर्वेद नाट्यवेद अस्त्र शस्त्र | |
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− | + | बढ़े अपराध दिन दूने रात चौगुने हैं | |
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− | + | नई पीढ़ी मक्खी मारे बैठी बैठी कक्षा में । | |
− | + | न्यायविद सरेआम बेच रहे संविधान | |
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+ | सींकचों के पीछे खड़े जिन्हें होना चाहिये था | ||
+ | ओढ़के मुखौटा आज बैठे हैं सदन में । | ||
+ | गाँधी जी की जय जयकार करके करें भ्रष्टाचार | ||
+ | जयन्ती मनायें एयरकंडीशन भवन में । | ||
+ | सत्य का तो अता नहीं त्याग का भी पता नहीं | ||
+ | मन में वचन में न दिखे आचरण में । | ||
+ | बुद्ध फिरें मारे मारे बुद्धू सारे मजा मारें | ||
+ | प्रबुद्ध युवा बेचारे पड़े उलझन में ।। | ||
+ | </poem> |
00:19, 20 जुलाई 2010 का अवतरण
भारत की भूमि न्यारी स्वर्ग से भी ज्यादा प्यारी
देवता भी जन्म लेना चाहें मेरे देश में ।
पर्वतों का राजा यहाँ नदियों की रानी यहाँ
धरती का स्वर्ग काश्मीर मेरे देश में ।।
शिवाजी प्रताप चन्द्रशेखर भगतसिंह
लक्ष्मीबाई जैसी नई पीढ़ी मेरे देश में ।
भारत महान था ये आज भी महान है
एक सिर्फ व्यवस्था की कमी मेरे देश में ।।
2
दुनियाँ की पहली किताब अपने पास में है
अमृतवाणी देवभाषा संस्कृत अपने पास है ।
पातञ्जल ध्यान योग गीता ज्ञान कर्मयोग
षटरस छप्पन भोग भी अपने पास है ।
आयुर्वेद धनुर्वेद नाट्यवेद अस्त्र शस्त्र
यन्त्र तन्त्र मन्त्र का भी लम्बा इतिहास है
पढ़े लिखे ज्ञानी सब बैठे हैं अँधेरों में और
लालटेनें सभी निरे लल्लुओं के पास हैं ।।
3
बढ़े अपराध दिन दूने रात चौगुने हैं
लगी है पुलिस सब चोरों की सुरक्षा में
राष्ट्रनिर्माता ज्ञाता वोटरलिस्ट बनाता
नई पीढ़ी मक्खी मारे बैठी बैठी कक्षा में ।
न्यायविद सरेआम बेच रहे संविधान
गुण्डे अपराधियों की खड़े प्रतिरक्षा में
भारत की भोली भाली जनता है आस्तिक
बैठी किसी नये अवतार की प्रतीक्षा में ।।
4
खेत जिसके पास में है सर्विस की तलाश में है
सर्विस वाले घूमते दूकान की तलाश में ।
ग्राहक को ठगने की ताक में दूकानदार
ग्राहक भी उधार लेके खाने के प्रयास में ।
बड़े पेट वाले बीमार हैं अधिक खा के
श्रमिक बेचारे खाली पेट उपवास में ।
डाकू चोर किन्नर आसीन राजगद्दियों पे
चन्द्रगुप्त चाणक्य गये वनवास में ।।
5
सींकचों के पीछे खड़े जिन्हें होना चाहिये था
ओढ़के मुखौटा आज बैठे हैं सदन में ।
गाँधी जी की जय जयकार करके करें भ्रष्टाचार
जयन्ती मनायें एयरकंडीशन भवन में ।
सत्य का तो अता नहीं त्याग का भी पता नहीं
मन में वचन में न दिखे आचरण में ।
बुद्ध फिरें मारे मारे बुद्धू सारे मजा मारें
प्रबुद्ध युवा बेचारे पड़े उलझन में ।।