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"प्रेम का आकार / जय राई छांछा" के अवतरणों में अंतर

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स्वदेश छोड / विदेश पहुँचा
 
स्वदेश छोड / विदेश पहुँचा
 
देश जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम
 
देश जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम
भू-तल छोड / चाँद पर पहुँचा  
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भू-तल छोड़ / चाँद पर पहुँचा  
 
पृथ्वी जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम ।
 
पृथ्वी जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम ।
  

13:21, 21 जुलाई 2010 का अवतरण

तुम्हारे साथ ही बैठा / तुम्हारे साथ ही उठा
तुम्हारे संग ही चला / तुम्हारे संग ही खेला
निकट का तुम्हारा प्रेम
एकदम तिल के आकार जैसा लगा ।

तुहें गाँव में ही छोड कर / शहर आया मैं
गाँव जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम
स्वदेश छोड / विदेश पहुँचा
देश जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम
भू-तल छोड़ / चाँद पर पहुँचा
पृथ्वी जितना ही लगा तुम्हारा प्रेम ।

अहा! कितना मीठा भ्रम !

या कोई बता सकता है
कैसा होता है प्रेम का आकार ?


मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला