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"कविता-1 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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केवल दर्द है फिर क्‍यों है यह प्‍यार ?
 
केवल दर्द है फिर क्‍यों है यह प्‍यार ?
 
कैसी मूर्खता है यह
 
कैसी मूर्खता है यह
कि चूंकि हमने उसे अपना दिल दे दिया
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कि चूँकि हमने उसे अपना दिल दे दिया
 
इसलिए उसके दिल पर
 
इसलिए उसके दिल पर
 
दावा बनता है,हमारा भी
 
दावा बनता है,हमारा भी
रक्‍त में जलती ईच्‍छाओं और आंखों में
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रक्‍त में जलती इच्‍छाओं और आँखों में
 
चमकते पागलपन के साथ
 
चमकते पागलपन के साथ
 
मरूथलों का यह बारंबार चक्‍कर क्‍योंकर ?
 
मरूथलों का यह बारंबार चक्‍कर क्‍योंकर ?
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दुनिया में और कोई आकर्षण नहीं उसके लिए
 
दुनिया में और कोई आकर्षण नहीं उसके लिए
 
उसकी तरह मन का मालिक कौन है;
 
उसकी तरह मन का मालिक कौन है;
वसंत की मीठी हवाएं उसके लिए हैं;
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वसंत की मीठी हवाएँ उसके लिए हैं;
फूल, पंक्षियों का कलरव सबकुछ
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फूल, पंक्षियों का कलरव सब कुछ
 
उसके लिए है
 
उसके लिए है
 
पर प्‍यार आता है
 
पर प्‍यार आता है

20:29, 21 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर  » कविता-1

अगर प्‍यार में और कुछ नहीं
केवल दर्द है फिर क्‍यों है यह प्‍यार ?
कैसी मूर्खता है यह
कि चूँकि हमने उसे अपना दिल दे दिया
इसलिए उसके दिल पर
दावा बनता है,हमारा भी
रक्‍त में जलती इच्‍छाओं और आँखों में
चमकते पागलपन के साथ
मरूथलों का यह बारंबार चक्‍कर क्‍योंकर ?

दुनिया में और कोई आकर्षण नहीं उसके लिए
उसकी तरह मन का मालिक कौन है;
वसंत की मीठी हवाएँ उसके लिए हैं;
फूल, पंक्षियों का कलरव सब कुछ
उसके लिए है
पर प्‍यार आता है
अपनी सर्वगासी छायाओं के साथ
पूरी दुनिया का सर्वनाश करता
जीवन और यौवन पर ग्रहण लगाता

फिर भी न जाने क्‍यों हमें
अस्तित्‍व को निगलते इस कोहरे की
तलाश रहती है ?

अंग्रेज़ी से अनुवाद : कुमार मुकुल