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"विभाजन / भारत भूषण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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तुमने सारे ठाठ इस आधार पर बनाए थे
कि एक की विजय
और दूसरे की पराजय होगी
तुमने दुनिया के लोगों को
या तो शत्रु समझा
या फिर मित्र
यानी तुम दो की सत्ता में विश्वास करते रहे
यह भूलकर
कि यह विभाजन दुनिया का नहीं
तुम्हारे मन का अपना है--।