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"चेहरा तुम्हारा / भारत भूषण अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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अब नहीं दिखता है चेहरा तुम्हारा !
सुन्दर वे सुधियाँ मैं सारी जगा चुका,
पर इस पर बैठा है
बड़ा कड़ा पहरा तुम्हारा ।
डूब गई सुधि,
तो उसकी चेतना भी डूब जाए
ओ--रे मन !
प्यार कब बनेगा इतना गहरा तुम्हारा ?
रचनाकाल : 08 अप्रैल 1966