भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गुलमोहर के नीचे / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: कितनी दफा मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे यादों कर सिलसिले हैं इस गुल…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कितनी दफा मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
+
<poem>
यादों कर सिलसिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
+
कितनी दफा मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
 +
यादों कर सिलसिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
  
ये है हमारे प्यार का इकलौता राजदार
+
ये है हमारे प्यार का इकलौता राजदार
क्या क्या न गुल खिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
+
क्या क्या न गुल खिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
  
पत्तों की पायजेब गुलों की मोहर गले
+
पत्तों की पायजेब गुलों की मोहर गले
गहने गजब मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
+
गहने गजब मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
  
पूरब से हम चले थे पच्छिम से आये तुम
+
पूरब से हम चले थे पच्छिम से आये तुम
दो दिल यहाँ मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
+
दो दिल यहाँ मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
  
कैसे बुने थे हमने सपने बड़े बड़े
+
कैसे बुने थे हमने सपने बड़े बड़े
वे स्वप्न के किले हैं इस गुलमोहर के नीचे
+
वे स्वप्न के किले हैं इस गुलमोहर के नीचे
  
पल में तुम्हारा रूठना और मेरा मनाना
+
पल में तुम्हारा रूठना और मेरा मनाना
नखरे हैं चोचले हैं इस गुलमोहर के नीचे
+
नखरे हैं चोचले हैं इस गुलमोहर के नीचे
  
अब भी अधूरे हैं जो किये थे कभी यहीं
+
अब भी अधूरे हैं जो किये थे कभी यहीं
वायदों के काफिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
+
वायदों के काफिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
  
अनचाहे वाकये भी यहाँ हैं दबे पड़े
+
अनचाहे वाकये भी यहाँ हैं दबे पड़े
शिकवे हैं कुछ गिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
+
शिकवे हैं कुछ गिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
 +
</poem>

01:39, 31 जुलाई 2010 का अवतरण

कितनी दफा मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
यादों कर सिलसिले हैं इस गुलमोहर के नीचे

ये है हमारे प्यार का इकलौता राजदार
क्या क्या न गुल खिले हैं इस गुलमोहर के नीचे

पत्तों की पायजेब गुलों की मोहर गले
गहने गजब मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे

पूरब से हम चले थे पच्छिम से आये तुम
दो दिल यहाँ मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे

कैसे बुने थे हमने सपने बड़े बड़े
वे स्वप्न के किले हैं इस गुलमोहर के नीचे

पल में तुम्हारा रूठना और मेरा मनाना
नखरे हैं चोचले हैं इस गुलमोहर के नीचे

अब भी अधूरे हैं जो किये थे कभी यहीं
वायदों के काफिले हैं इस गुलमोहर के नीचे

अनचाहे वाकये भी यहाँ हैं दबे पड़े
शिकवे हैं कुछ गिले हैं इस गुलमोहर के नीचे