भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सर ये फोड़िए / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जॉन एलिया }}<poem>{{KKVID|v=n68eqD4JqDc}} Category:ग़ज़ल सर ये फोड़िए …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
09:58, 1 अगस्त 2010 का अवतरण
यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें
सर ये फोड़िए नदामत में
नीन्द आने लगी है फुरसत में
वो खला है कि सोचता हूँ मैं
उससे क्या गुफ्तगू हो खलबत में
मेरे कमरे का क्या बया कि यहाँ
कौन थूका गया शरारत में
रूह ने इश्क का फरेब दिया
ज़िस्म को ज़िस्म की अदावत में
अब फकत आदतो की वर्जिश है
रूह शामिल नहीं शिकायत में
ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम
रूठते अब भी है मुर्रबत में
तो जो तामीर होने वाली थी
लग गई आग उस इमारत में
ऐ खुदा जो कही नहीं मौज़ूद
क्या लिखा है हमारी किस्मत में
ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मुहब्बत में