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"पहाड़गंज का प्रतिबिंब / जय छांछा" के अवतरणों में अंतर

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13:42, 1 अगस्त 2010 का अवतरण

हिंदी में बात करता है पहाड़गंज
बोलता है उर्दू, पंजाबी और नेपाली भी
अंग्रेज़ी तो बहुत ही अच्छी तरह समझता है
जापानी और जर्मनी भाषा का भी रखता है ज्ञान
फ्रेंच और इटालियन भाषा में दखल नहीं है, ऐसा भी नहीं है

नहीं तो कैसे चलेंगे रेस्टोरेंट और होटल
लॉज, कैफे और साइवर-कैफे
खुदरा और क्युरियो की दुकानें
किसने कैसे समझा है पहाड़गंज को
यह बात तो मुझे पता ही नहीं चला ।

सुबह के समय एकदम शांत होकर
गहरी नींद में सोया हुआ होता है
दिनभर जल्दबाज़ी पर सवार, पसीना पोंछते दौड़ता है
साँझ में आगंतुक सभी को
रेस्टोरेंट में चुलेई निम्तो<ref>नेपालियों लोग शादी में या किसी अनुष्ठान के अवसर पर किसी परिवार के सभी सदस्यों को रोटी के लिये आमंत्रित करते हैं तो कहते हैं- 'आप लोगों के घर चुलेई निम्तो'। यानी उस दिन आपके घर चूल्हा नहीं जलेगा।</ref> है करता ।

जब घोर अंधेरा आँगन में जाता है उतर
कर्फ्यू लगने का इशारा करते
सभी को हटाता है और
निंद्रा देवी की गोद में मस्त लीन हो जाता है पहाड़गंज ।
 
पहली बार अगर आएँ हैं पहाडगंज में
बड़े ही दयालु, मायालु और मिलनसार
अनुभूति होगी आपको इसमें कोई शंका ही नहीं
क्योंकि पहाड़गंज आपको हाथ पकड़कर
रेस्टोरेंट के काठ के बैंचों पर बिठाता है
बारह रुपये में भरपेट भात मिलता है कहकर
बेशर्म होकर डेढ सौ रुपये माँगता है
इतने में ही बात कहाँ ख़त्म होती है महामान्य
प्रत्येक दुकानदार
आदमी का रूप, रंग और चेहरा
भाषा, बोली और लाइव अनुसार
समान का मूल्य समेत बताता है पहाडगंज ।
 
पहाडगंज बाजार की सड़कें
इतनी चौड़ी नहीं हैं
क्लेव मेन बाजार और नेहरू मार्ग पर
छोटी कार, ऑटो और रिक्शा फिरते हैं
फुटपाथ पर चलने वालों के कदम-कदम पर
घूमंतु खुदरा व्यापारी सामान भिड़ाते हैं
कतिपय भिखारी हाथ फैलाए आपका पीछा करते हैं

हाँ, सच पर्यटकों का इंतज़ार करते हैं
काठमांडो के बसंतपुर और ठमेल जैसे
बोन जर्मनी के व्याड गोडेसवर्ग में
मार्क-मार्क कह कर जिप्सियों के चिल्लाने जैसा।
 
मैंने सरसरी निगाह से जिस पहाड़गंज को देखा
और मेरे सतही रूप में समझे पहाडगंज से
दूसरों के समझे और भोगे हुए से भिन्न हो सकता है
लेकिन मैंने जिसे जाना, भोगा और छुआ
यथार्थ का प्रतिबिंब कहने को यही है पहाड़गंज।
मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला

शब्दार्थ
<references/>