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"फ़ासिल / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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11:30, 2 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

वे कह रहे थे- फ़ासिल
मैं देख रहा था- फ़ासले
तुम सुन रहे थे- फ़ैसले

बसी हुई दुनियाएँ
जब उजड़ती और मिटती हैं
फ़ासले और फ़ैसले
आख़िरकार
फ़ासिलों में ही तो
ढलते हैं ।