"आगच्छ कृष्ण! / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
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+ | स्वार्थाय मिथ्यात्र प्रीतिः अपूर्णाऽक्षमा दण्डनीतिः। | ||
+ | भ्रष्टाऽभवल्लोकरीतिः स्वैरंगता राजनीतिः ।। | ||
+ | आगच्छ हे चक्रपाणे! नीत्वा सुदर्शनं करे।। | ||
+ | हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे ! | ||
+ | लुप्तं मधुर संगीतं बहु श्रूयते पाप गीतम्। | ||
+ | ननु दृश्यते नग्नतैव गतं क्व विशिष्टं अतीतम्।। | ||
+ | संस्थापनार्थं कलायाः आगच्छ मुरलीधर हे! | ||
+ | हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे ! | ||
− | + | दधि दुग्ध तक्राण्यपेयं दुश्चूषकं बालप्रेयं । | |
− | + | पेप्सी द्रवं नंमधेयं सर्व प्रियं शितपेयं।। | |
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00:11, 3 अगस्त 2010 का अवतरण
हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे !
आगच्छ मामुद्धराऽहं मग्नोस्मि भवसागरे।।
अभवत्तु धर्मस्य ग्लानिः अधर्मस्य जातं प्रभुत्वम्।
खलु शास्त्रनीत्याश्च हानिः गतं संकटे मानवत्वम्।।
गीता स्वकथनानुसारेण आगच्छ नटनागर हे!
हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे !
स्वार्थाय मिथ्यात्र प्रीतिः अपूर्णाऽक्षमा दण्डनीतिः।
भ्रष्टाऽभवल्लोकरीतिः स्वैरंगता राजनीतिः ।।
आगच्छ हे चक्रपाणे! नीत्वा सुदर्शनं करे।।
हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे !
लुप्तं मधुर संगीतं बहु श्रूयते पाप गीतम्।
ननु दृश्यते नग्नतैव गतं क्व विशिष्टं अतीतम्।।
संस्थापनार्थं कलायाः आगच्छ मुरलीधर हे!
हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे !
दधि दुग्ध तक्राण्यपेयं दुश्चूषकं बालप्रेयं ।
पेप्सी द्रवं नंमधेयं सर्व प्रियं शितपेयं।।
पञ्चामृत प्रिय गोपालं नवनीत चौरं भजे।
हे कृष्ण माधव मुरारे राधा सखे हे हरे !