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"संस्कृत-लोकगीतम्। / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
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+ | प्रेषितं न किञ्चित् सन्देशम् | ||
+ | हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।। | ||
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− | + | हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।। | |
− | + | रोचते न तेन बिना शुष्क शुष्क दिवसः | |
− | + | निशा भवति भयावहा क्रमश;क्रमशः | |
− | + | कष्टकरं सर्वं परिवेशम् । | |
− | + | हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।। | |
− | + | श्रूयते तु अहर्निशं स्वासुः अपशब्दं | |
− | + | दैनिकोपियोगि वस्तु अस्ति नोपलब्धं | |
− | + | रोचते न स्वशुरोपदेशम् । | |
− | + | हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।। | |
− | + | वैरी प्रत्यागतॊ न भवति एक-मासः | |
− | + | आगतं न पत्रं न कृतं दूरभाषः | |
− | + | प्रेषितं च नैव धनादेशम् । | |
− | + | हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।। | |
− | + | न जानेप्यहं तेन त्यक्ता किमर्थम् | |
− | + | अधुनाहं थकितास्मि पथ दर्शं-दर्शं | |
− | + | किमर्थं ददाति ह्रदय क्लेशम् । | |
− | + | हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।। | |
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00:23, 3 अगस्त 2010 का अवतरण
प्रेषितं न किञ्चित् सन्देशम्
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।
खण्डितं तु सप्तपञ्च वचनानुबन्धं
कस्यचिदागच्छति षडयन्त्रस्यगन्धं ।
दृश्यते ह्रदि अपरा प्रवेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।
रोचते न तेन बिना शुष्क शुष्क दिवसः
निशा भवति भयावहा क्रमश;क्रमशः
कष्टकरं सर्वं परिवेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।
श्रूयते तु अहर्निशं स्वासुः अपशब्दं
दैनिकोपियोगि वस्तु अस्ति नोपलब्धं
रोचते न स्वशुरोपदेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।
वैरी प्रत्यागतॊ न भवति एक-मासः
आगतं न पत्रं न कृतं दूरभाषः
प्रेषितं च नैव धनादेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।
न जानेप्यहं तेन त्यक्ता किमर्थम्
अधुनाहं थकितास्मि पथ दर्शं-दर्शं
किमर्थं ददाति ह्रदय क्लेशम् ।
हा गतः प्रियतमः विदेशम् ।।