"मायूस मसूरी की खामोशी / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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अंधे रास्तों पर | अंधे रास्तों पर | ||
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चम्पक वृक्षों पर | चम्पक वृक्षों पर | ||
चुटकले सुनाने वाले विहंग मित्र | चुटकले सुनाने वाले विहंग मित्र | ||
− | अपनी मायूसियों से बाहर निकल | + | अपनी मायूसियों से बाहर निकल, |
नहीं बुला पा रहे हैं | नहीं बुला पा रहे हैं | ||
− | अपनी मिन्नतों-मन्नतों से | + | --अपनी मिन्नतों-मन्नतों से-- |
छमकती देवी चम्पावती को | छमकती देवी चम्पावती को | ||
देवदारुओं के पाँव | देवदारुओं के पाँव | ||
उखड़ चुके हैं जमीन से, | उखड़ चुके हैं जमीन से, | ||
− | लेकिन, शिलाओं पर टिके हुए हैं | + | लेकिन, शिलाओं पर टिके हुए हैं, |
डगमगा-डगमगाकर | डगमगा-डगमगाकर | ||
अपनी नाखूनी जड़ों से | अपनी नाखूनी जड़ों से | ||
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अभी भी निरीह शिकार जोह रही हैं | अभी भी निरीह शिकार जोह रही हैं | ||
और जैसे देख रही हैं सपने | और जैसे देख रही हैं सपने | ||
− | झुण्ड में आकर प्यास-बुझाते हिरणों के | + | झुण्ड में आकर प्यास-बुझाते हिरणों के, |
जिन पर वे टूट पड़ेंगे | जिन पर वे टूट पड़ेंगे | ||
गुम्फित झाड़ियों से अट्टहास निकलकर. | गुम्फित झाड़ियों से अट्टहास निकलकर. |
19:14, 3 अगस्त 2010 का अवतरण
मायूस मसूरी की खामोशी
(दिनांक १५ जून, २०१०; माल रोड के नीचे
एक गूंगे चट्टान पर बैठकर)
पर्वतीय सन्नाटे को तोड़ने वाली
नहीं रहेगी चीड़ की खामोशी,
पलाश के कंकाल पर बैठे
उदास उल्लुओं से पूछो!
'कहां गए--
अंधे रास्तों पर
कहकहेबाज उजले लोग?'
चम्पक वृक्षों पर
चुटकले सुनाने वाले विहंग मित्र
अपनी मायूसियों से बाहर निकल,
नहीं बुला पा रहे हैं
--अपनी मिन्नतों-मन्नतों से--
छमकती देवी चम्पावती को
देवदारुओं के पाँव
उखड़ चुके हैं जमीन से,
लेकिन, शिलाओं पर टिके हुए हैं,
डगमगा-डगमगाकर
अपनी नाखूनी जड़ों से
एक दानवी आत्मविश्वास के साथ
अरे, देखो!
उनकी निष्पात डालियाँ
तीरों की तरह धंसी हुई हैं
उनकी देह पर,
उनके पांवों के नीचे गहराई में
मिथक बन चुके झरनों पर
भेड़ियों की छायाएं
अभी भी निरीह शिकार जोह रही हैं
और जैसे देख रही हैं सपने
झुण्ड में आकर प्यास-बुझाते हिरणों के,
जिन पर वे टूट पड़ेंगे
गुम्फित झाड़ियों से अट्टहास निकलकर.