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"धुंधलका / अशोक लव" के अवतरणों में अंतर
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शीशे के पार देखना | शीशे के पार देखना | ||
− | सब कुछ साफ़ साफ़ दिखने लगेगा | + | सब कुछ साफ़-साफ़ दिखने लगेगा |
− | मैं तो | + | मैं तो वहीं खड़ा था |
जहाँ अब दिखाई देने लगा हूँ | जहाँ अब दिखाई देने लगा हूँ | ||
सिर्फ धुंध ने तुम्हे | सिर्फ धुंध ने तुम्हे | ||
बहका रखा था | बहका रखा था | ||
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02:24, 4 अगस्त 2010 का अवतरण
मित्र !
जब धुंध इतनी घिर जाए
कि शीशे के पार कुछ दिखाई ना दे
तब -
हथेलियों से शीशे को पोंछ लेना
फिर
शीशे के पार देखना
सब कुछ साफ़-साफ़ दिखने लगेगा
मैं तो वहीं खड़ा था
जहाँ अब दिखाई देने लगा हूँ
सिर्फ धुंध ने तुम्हे
बहका रखा था