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"शहीद की माँ से / रविकांत अनमोल" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकांत अनमोल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> राह तकती हो रा…)
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22:06, 5 अगस्त 2010 का अवतरण

राह तकती हो रात दिन जिसकी,
वो कभी लौट कर न आएगा
वो तिरा लाडला कभी फिर से,
तेरे पैरों को छू न पाएगा
कर सकेगा न रसभरी बातें,
ला सकेगा न अब वो सौग़ातें
लोग कहते हैं देश की ख़ातिर
जान कुर्बान कर गया है वो
उसने राहे वतन पे हँस-हँस के
जान दे दी है मर गया है वो

ऐसी बातों पे मत यकीं करना
लोग झूटे हैं बात झूटी है
लाल तेरा मरा नहीं अम्मा
वो तिरा लाल मर नहीं सकता
देश के रास्ते पे चलते हुए
देश में लीन हो गया है वो
बन के ख़ुश्बू वतन की मिट्टी की
इन हवाओं में खो गया है वो
देश का इक जवान था पहले
आज कुल देश हो गया है वो

आज से कुल वतन तिरा बेटा
आज से तू वतन की अम्मा है
देश का हर जवान हर बच्चा
तेरा बेटा है तेरा अपना है