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"तितलियाँ / शाहिद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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16:28, 8 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

रात सोने के बाद
तकिए के नीचे से सरकती हुई
आती हैं यादों की ति‍तलियाँ
तितलियाँ पंख फड़फड़ाती हैं

कभी छुआ है तुमने इन तितलियों को
उनके ख़ूबसूरत पंखों को
मीठा-मीठा से लमस हैं उनमें
एक सुलगता-सा एहसास
जो गीली कर जाते हैं मेरी आँखें

तितलियाँ पंख फड़फड़ाती हैं
तितलियाँ उड़ जाती हैं
तितलियां वक़्त‍ की तरह हैं
यादें छोड़ जाती हैं
ख़ुद याद बन जाती हैं

तितलियाँ बचपन की तरह हैं
मासूम खिलखिलाती
हमें अपनी मासुमियत की याद दिलाती हैं
जिसे हम खो बैठे हैं जाने अनजाने
चंद रोटियों के खातिर
जीवन के महासमर में...

हर रात नींद की आगोश में
जीवन के टूटते बिखरते सपनों के बीच
मैं खोजता हूँ
अपने तकिये के नीचे
कुछ पल बचपन के, कुछ मासूम तितलियाँ...