भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जब कोई क्षण टूटता / अमृता भारती" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमृता भारती |संग्रह=मन रुक गया वहाँ / अमृता भारत…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:56, 13 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
वह
मेरी सर्वत्रता था
मैं
उसका एकान्त-
इस तरह हम
कहीं भी अन्यत्र नहीं थे ।
जब
कोई क्षण टूटता
वहाँ होता
एक अनन्तकालीन बोध
उसके समयान्तर होने का
मुझमें ।
जब
कोई क्षण टूटता
तब मेरा एकान्त
आकाश नहीं
एक छोटा-सा दिगन्त होता
उसके चारों ओर ।