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"धूप के नखरे बढ़े / दिनेश सिंह" के अवतरणों में अंतर

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एक मंदिर गर्भ गृह में
 
एक मंदिर गर्भ गृह में
मूर्तियां मन की गढ़े  
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मूर्तियाँ मन की गढ़े  
  
 
बहुत छोटे दिन
 
बहुत छोटे दिन

12:23, 28 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

शीत की अंगनाइयों में
धूप के नखरे बढ़े

बीच घुटनों के धरे सिर
पत्तियों के ओढ़ सपने
नीम की छाया छितरकर
कटकटाती दाँत अपने

गोल कंदुक के हरे फल
छपरियों पर जा चढ़े

फूल पीले कनेरों के
पेड़ के नीचे झरे तो
तालियों में बज रहें हैं
बेल के पत्ते हरे जो

एक मंदिर गर्भ गृह में
मूर्तियाँ मन की गढ़े

बहुत छोटे दिन
लिहाफों में बड़ी रातें छिपाकर
भागते हैं क्षिप्र गति में
अँधेरों में कहीं जाकर

शाम के दो जाम
ओठों पर चढ़े
शीशे मढ़े