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"आँसू-छन्द / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु" के अवतरणों में अंतर

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बेगुनाहों के
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इस लहू में
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धर्म -ईमान सब
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|रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
खो गया,
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यहाँ न जाने
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कौन बहेलिया
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मौत का चारा
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बो गया ।
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चीख-कराहें
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लथपथ धरती
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उड़ती है
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बारूदी गन्ध,
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कायरता वाली
+
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करतूतें
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कितना अच्छा होता !
निश-दिन लिखती
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कितना अच्छा होता !जो तुम
आँसू-छन्द।
+
यूँ बरसों पहले मिल जाते
मासूमों का
+
सच मानो इस मन के पतझर-  
नन्हा बचपन
+
में फूल हज़ारों खिल जाते
छिपते सूरज-सा
+
खुशबू से भर जाता आँगन ।
हो गया
+
कुछ अपना दुख हम कह लेते
हथियारों के
+
कुछ ताप तुम्हारे सह लेते
सौदागर भी
+
कुछ तो आँसू पी लेते हम
अमन के नारे
+
कुछ में हम दो पल बह लेते
लगा रहे ।
+
हल्का हो जाता अपना मन
पहने मुखौटे
+
तुमने चीन्हें मन के आखर
मानवता के
+
तुमने समझे पीड़ा के स्वर
भस्मासुर को
+
तुम हो मन के मीत हमारे
जगा रहे।
+
रिश्तों के धागों से ऊपर
बेबसी की इस
+
तुम हो गंगा -जैसी पावन ।
क़त्लग़ाह में
+
मानव ही कहीं
+
सो गया।
+
 
</poem>
 
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16:29, 30 अगस्त 2010 का अवतरण

कितना अच्छा होता !
कितना अच्छा होता !जो तुम
यूँ बरसों पहले मिल जाते
सच मानो इस मन के पतझर-
में फूल हज़ारों खिल जाते
खुशबू से भर जाता आँगन ।
कुछ अपना दुख हम कह लेते
कुछ ताप तुम्हारे सह लेते
कुछ तो आँसू पी लेते हम
 कुछ में हम दो पल बह लेते
हल्का हो जाता अपना मन ।
तुमने चीन्हें मन के आखर
तुमने समझे पीड़ा के स्वर
तुम हो मन के मीत हमारे
रिश्तों के धागों से ऊपर
तुम हो गंगा -जैसी पावन ।