भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किसकी तसल्ली पर अब रोकूँ अश्कों के सैलाब मिरे / संकल्प शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Aadil rasheed (चर्चा | योगदान) |
Aadil rasheed (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब<ref>दोस्त</ref> मिरे | देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब<ref>दोस्त</ref> मिरे | ||
− | जब से | + | जब से गया वो नहीं चहकती चिड़िया आकर खिड़की में, |
और महकना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब मिरे | और महकना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब मिरे | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 16: | ||
पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के, | पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के, | ||
− | + | तुझ को ग़मगीं<ref>ग़मगीन,उदास </ref> भी कर सकते हैं वो सब असबाब<ref>कारण का बहुवचन </ref> | |
− | + | </poem> मिरे | |
− | </poem> | + | |
{{KKMeaning}} | {{KKMeaning}} |
20:21, 30 अगस्त 2010 का अवतरण
किसकी तसल्ली पर मैं रोकूँ अश्कों के सैलाब मिरे,
देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब<ref>दोस्त</ref> मिरे
जब से गया वो नहीं चहकती चिड़िया आकर खिड़की में,
और महकना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब मिरे
आस के दामन से लिपटे हम कब तक तेरी राह तकें,
या तो दीद<ref>देखने को</ref> की सूरत दे या बिखरा दे सब ख्वाब मिरे
पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के,
तुझ को ग़मगीं<ref>ग़मगीन,उदास </ref> भी कर सकते हैं वो सब असबाब<ref>कारण का बहुवचन </ref>
शब्दार्थ
<references/>