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"अस्तित्व का स्वाद / ओम पुरोहित ‘कागद’" के अवतरणों में अंतर
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(कोई अंतर नहीं)
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12:43, 31 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
प्याज के छिलकों की तरह
जीवन के दिन,
उतरते... उतरते....
चले गये,
और मैं
भीतर की
अन्तिम पर्त मात्र रह गया हूं
फिर भी लोग,
न जाने क्यूं मुझे
अपनी आहार सामग्री में रखते हैं ।
समय,
असमय
सुबह
और शाम
मेरे अस्तित्व का
स्वाद चखते हैं।