भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कविर्मनीषी / अमोघ" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमोघ नारायण झा 'अमोघ' |संग्रह=गीत गंध / अमोघ }} {{KKCatKav…)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:28, 2 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

युग द्रष्टा हूँ,
युग स्रष्टा हूँ,
मुझे नहीं यह मान्य
कि रुक महफिल में गाऊँ,
याकि किसी भी बड़ी मौत
पर लिखूँ मर्सिया
विरुदावलि गानेवाला तो
कोई चारण होगा।

कवि हूँ, नहीं बहा करता हूँ कालानिल पर
मैं त्रिकाल को मुट्ठी में कर बंद
साँस में आँधी औ तूफान लिए चलता हूँ।
रचता हूँ दुनिया गुलाब की
काँटों को भी साथ लिए चलता हूँ।

प्रदूषणों की मारी
ओ बीमार मनुजता,
मलय पवन की मदिर गंध से
मैं तेरा उपचार किया करता हूँ।

आओ, भोगवाद की जड़ता से आगे
दिव्य चेतना के प्रकाश में तुझे ले चलूँ,
चिदानंद की तरल तरंगों के झूले पर तुझे झुला दूँ,
मधु-पराग से नहा
तुम्हारे सारे-कल्मष दूर भगाऊँ
कर दूँ स्वस्थ, सबल, स्फूर्तिमय।

मेघदूत की सजल कल्पना
के झूले पर तुझे झुलाऊँ।
सुषमा के हाथों आसव,
श्रद्धा के हाथों अमिय पिलाऊँ।

आज भले तुम मूल्य
आँक लो कवि से अधिक
कार-मैकेनिक का
क्योंकि तुम्हारे कवि तो हैं बेकार;
और सरकार तुम्हारी साथ कार के
पर दशाब्दियों या
शताब्दियों बाद कहोगे
ख़ूब कह गया,
रहा नहीं बेचारा!
खोजो डीह कहाँ है,
हाँ, हाँ खोजो डीह कहाँ है?


रचनाकाल : जुलाई 1961