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तुम्हारी मुस्कान
लगती है ठंड में
उज्ज्वल धूप की तरह
और प्रकाशित करती है
हृदय के हर कोण को ।
तुम्हारी निश्छल मुस्कान
भुला देती है संबधों की परिभाषा
परिचय का आदान-प्रदान
यहाँ तक कि नाम भी,
बनी रहनी चाहिए
तुम्हारी यह पवित्र निश्छल मुस्कान
जीवन के इस सोलहवें वसंत से
अस्सी के पतझड़ तक
उम्र के विभिन्न हताशामय दौर,
विवादास्पद समय,
आलोचनात्मक निगाहों के
बीच से गुज़रते हुए भी
बनी रहनी चाहिए
यह पवित्र निश्छल स्नेहिल मुस्कान ।