भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हत्यारे-2 / रामकृष्‍ण पांडेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृष्‍ण पांडेय |संग्रह =आवाज़ें / रामकृष्‍ण प…)
 
(कोई अंतर नहीं)

19:47, 5 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

हत्यारे का चेहरा
हमेशा ही काला होता है
काला और बदसूरत
बेहद घिनौना

पहले वह
अपनी ही हत्या करता है
अपने भीतर के आदमी की
फिर किसी और की हत्या करता है

हत्या करने से पहले
वह बेहद खूँखार जानवर में
बदल चुका होता है
उसके पंजों में तीखे नाख़ून उग आते हैं
माथे पर सींग
और दाढ़ों में पैने नुकीले दाँत
पर वे दिखते नहीं हैं
हत्यारा उन्हें छुपाना जानता है

हत्यारा पान भी खाता है
जिसकी पीक उसके होंठों से बहते हुए
कमीज़ पर टपकती रहती है
जब आईना देखता है
उसे ख़ून की याद आती है

हत्यारा
सुंदर दीखना चाहता है
इसीलिए सिल्क के कुर्ते पर
सोने की चेन पहनता है
पर हमेशा डरता रहता है
कि लोग उसे पहचान नहीं लें
इसलिए मुस्कुराने की
और हमेशा ठहाके लगाने की
कोशिश करता है

हत्यारे को
आप पहचानते हैं
फिर भी कुछ नहीं कर सकते
क्योंकि आप जानते हैं कि
उसके पीछे एक पूरा गिरोह है
एक पूरा तंत्र है
जो इस समाज की व्यवस्था पर
काबिज़ है