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गर्मी की शुरुआत ,
मैं खोलती हूँ खिड़की दूसरे ताल पर,
सूर्योदय से पहले हवा ठंडी है .
और पुकारती है मुझे ,-उठो! जागो !
मैं शांत बैठ लेती हूँ गहरी सांस
निकाल सारी हवा एक निश्वास में ,
झुकती हुई आगे
धीरे धीरे !
अगले ही पल
मेरे हरे भरे बगीचे की ताज़ी हवा
बहकर भर जाती है सीने में .
फिर से निकलती हूँ बासी सांस धीरे धीरे
आगे झुकते हुए .
और ताज़ी हवा को अन्दर लेते हुए
जैसे खड़ी होती हूँ सीधे !
चीं -चीं, चूँ -चूँ
मैं निगलती हूँ
चिड़ियों के स्वर भी
मैं जी रही हूँ
अब !
अनुवादक: मंजुला सक्सेना