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"हक़ / नरेश अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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18:02, 7 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

प्रकृति की सुंदरता पर किसी का हक़ नहीं था
वो आज़ाद थी, इसलिए सुंदर थी
एक ख़ूबसूरत चट्टान को तोडक़र
दो नहीं बनाया जा सकता
ना ही एक बकरी के जिस्म को दो ।

इस धूप को कोई नहीं रोक सकता था
धीरे-धीरे यह छा जाती थी चारों तरफ़
इसलिए इसके भी दो हिस्से नहीं हो सकते
और जो हिस्से सुंदर नहीं थे
वे लड़ाईयों के लिए पहले ही छोड़ दिए गए थे ।