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पूजा के बाद हमसे कहा गया
हम विसर्जित कर दें
जलते हुए दीयों को नदी के जल में
ऐसा ही किया हम सबने ।
सैकड़ों दीये बहते हुए जा रहे थे एक साथ
अलग-अलग कतार में ।
वे आगे बढ़ रहे थे
जैसे रात्रि के मुँह को थोड़ा-थोड़ा खोल रहे हों, प्रकाश से
इस तरह से मीलों की यात्रा तय की होगी इन्होंने
प्रत्येक किनारे को थोड़ी-थोड़ी रोशनी दी होगी
बुझने से पहले ।
इनके प्रस्थान के साथ-साथ
हम सबने आँखें मूंद ली थी
और इन सारे दीयों की रोशनी को
एक प्रकाश-पुंज की तरह महसूस किया था
हमने अपने भीतर ।