भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गीत-4 / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> दीप सा मन जलता रह…)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
दे के आवाज़ तुमको पुकारा भी था
 
दे के आवाज़ तुमको पुकारा भी था
 
फिर भी पथ में अकेला मैं क्यों रह गया
 
फिर भी पथ में अकेला मैं क्यों रह गया
इसी उलझन में उलझा रहा रात् भर, दीप सा मन……
+
इसी उलझन में उलझा रहा रात भर, दीप सा मन……
  
हैं ठहरते सभी के यहीं पर कदम
+
हैं ठहरते सभी के यहीं पर क़दम
सफ़र होता सभी का यहीं पर खत्म
+
सफ़र होता सभी का यहीं पर ख़त्म
 
सभी आये हैं आओगे तुम भी यहीं
 
सभी आये हैं आओगे तुम भी यहीं
इसी आशा में जगता रहा रात भर, दीप सा मन्………
+
इसी आशा में जगता रहा रात भर, दीप सा मन………
 
1988
 
1988
  
 
<poem>
 
<poem>

19:15, 7 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण



दीप सा मन जलता रहा रात भर
स्नेह आँखों से झरता रहा रात भर

दूर तक मैंने तुमको पुकारा भी था
दे के आवाज़ तुमको पुकारा भी था
फिर भी पथ में अकेला मैं क्यों रह गया
इसी उलझन में उलझा रहा रात भर, दीप सा मन……

हैं ठहरते सभी के यहीं पर क़दम
सफ़र होता सभी का यहीं पर ख़त्म
सभी आये हैं आओगे तुम भी यहीं
इसी आशा में जगता रहा रात भर, दीप सा मन………
1988