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"उसका अपना ही करिश्मा है फ़सूँ है यूँ है / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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उसका अपना ही करिश्मा है फ़सूँ है, यूँ है
 
उसका अपना ही करिश्मा है फ़सूँ है, यूँ है
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यूँ तो कहने को सभी कहते है, यूँ है, यूँ है
 
यूँ तो कहने को सभी कहते है, यूँ है, यूँ है
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जैसे कोई दर-ए-दिल हो पर सिताज़ा कब से
 
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एक साया न दरू है न बरू है, यूँ है,
 
एक साया न दरू है न बरू है, यूँ है,
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तुमने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफा की तस्वीर
 
तुमने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफा की तस्वीर
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चले हर खार पे कि कतरा-ए-खूँ है, यूँ है
 
चले हर खार पे कि कतरा-ए-खूँ है, यूँ है
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अब तुम आए हो मेरी जान तमाशा करने
 
अब तुम आए हो मेरी जान तमाशा करने
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अब तो दरिया में तलातुम न सकूँ है, यूँ है
 
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नासेहा तुझको खबर क्या कि मुहब्बत क्या है
 
नासेहा तुझको खबर क्या कि मुहब्बत क्या है
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रोज़ आ जाता है समझाता है, यूँ है, यूँ है
 
रोज़ आ जाता है समझाता है, यूँ है, यूँ है
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शाइरी ताज़ा ज़मानो की है मामर 'फ़राज़'
 
शाइरी ताज़ा ज़मानो की है मामर 'फ़राज़'
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ये भी एक सिलसिला कुन्फ़े क्यूँ है, यूँ है, यूँ है
 
ये भी एक सिलसिला कुन्फ़े क्यूँ है, यूँ है, यूँ है

06:55, 8 सितम्बर 2010 का अवतरण

उसका अपना ही करिश्मा है फ़सूँ है, यूँ है

यूँ तो कहने को सभी कहते है, यूँ है, यूँ है


जैसे कोई दर-ए-दिल हो पर सिताज़ा कब से

एक साया न दरू है न बरू है, यूँ है,


तुमने देखी ही नहीं दश्त-ए-वफा की तस्वीर

चले हर खार पे कि कतरा-ए-खूँ है, यूँ है


अब तुम आए हो मेरी जान तमाशा करने

अब तो दरिया में तलातुम न सकूँ है, यूँ है


नासेहा तुझको खबर क्या कि मुहब्बत क्या है

रोज़ आ जाता है समझाता है, यूँ है, यूँ है


शाइरी ताज़ा ज़मानो की है मामर 'फ़राज़'

ये भी एक सिलसिला कुन्फ़े क्यूँ है, यूँ है, यूँ है