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18:59, 13 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

शब्द
अनायास कभी तो
चले आते हैं होठों पर
और कभी
लाख कोशिश करो तो भी
हाथ नहीं आते ।

शब्दों का चेहरा
कभी तो आता है नज़र
और कभी
लाख कोशिश करो तो भी
हाथ नहीं आता ।

धुँधले,
अस्पष्ट,
ख़ूब सांकल खटखटाओ
फिर भी किवाड़ न खुले
यूँ शब्द जमे ही रहते हैं ।

कभी समंदर की तरह गरज़ते हैं
और कभी लाख कोशिश करो
तब भी नहीं बोलते ।



मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति