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19:31, 13 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
घर के छप्पर से निकलकर
बादल के साथ मिलता धुआँ
और घाटी में बहते रहते
छोटे-छोटे झरने
लाल-लाल झरबेरियों से
लदा हुआ पेड़
और
सूर्य को छिपाने की कोशिश करते
बाँस के जंगल...
इस साल भी मुझे
जब मैं पीलू के तने से
टिककर बैठा
तब उसकी याद
हिरनी की तरह दौड़ कर आई ।
मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : क्रान्ति