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11:34, 16 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
ग़ायब हर मंज़र<ref>दृश्य, नज़ारा</ref> मेरा ।
ढूँढ़ परिन्दे घर मेरा ।
जंगल में गुम फ़स्ल मेरि
नदी में गुम पत्थर मेरा ।
दुआ मेरि गुम सर-सर में
भँवर में गुम महवर<ref>धुरी</ref> मेरा ।
नाफ़<ref>नाभि</ref> में गुम सब ख़्वाब मेरे
रेत में गुम बिस्तर मेरा ।
सब बेनूर क़्यास<ref>अनुमान</ref> मेरे
गुम सारा दफ़्तर मेरा ।
कभी-कभी सब कुछ ग़ायब
नाम, कि गुम अक्सर मेरा ।
मैं अपने अन्दर की बहार
'बानी' क्या बाहर मेरा ।
शब्दार्थ
<references/>