"नया शिवाला / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर
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− | सच कह दूँ ऐ | + | सच कह दूँ ऐ बिरहमन<ref>ब्राह्मण |
− | तेरे | + | </ref> गर तू बुरा न माने<br> |
+ | तेरे सनमकदों के बुत हो गये पुराने<br><br> | ||
अपनों से बैर रखना तू ने बुतों से सीखा<br> | अपनों से बैर रखना तू ने बुतों से सीखा<br> | ||
− | जंग-ओ-जदल सिखाया वाइज़ को भी ख़ुदा ने<br><br> | + | जंग-ओ-जदल<ref>दंगा-फ़साद</ref> सिखाया वाइज़<ref>उपदेशक</ref> को भी ख़ुदा ने<br><br> |
− | तंग आके आख़िर | + | तंग आके मैंने आख़िर दैर-ओ-हरम<ref>मंदिर-मस्जिद</ref> को छोड़ा<br> |
− | वाइज़ का वाज़ छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने<br><br> | + | वाइज़ का वाज़<ref>उपदेश</ref> छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने<br><br> |
पत्थर की मूरतों में समझा है तू ख़ुदा है<br> | पत्थर की मूरतों में समझा है तू ख़ुदा है<br> | ||
ख़ाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है<br><br> | ख़ाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है<br><br> | ||
− | आ | + | आ ग़ैरियत<ref>अपरिचय</ref> के पर्दे इक बार फिर उठा दें<br> |
बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें<br><br> | बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें<br><br> | ||
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दामान-ए-आस्माँ से इस का कलस मिला दें<br><br> | दामान-ए-आस्माँ से इस का कलस मिला दें<br><br> | ||
− | हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे मीठे<br> | + | हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे- मीठे<br> |
− | सारे पुजारियों को | + | सारे पुजारियों को मय प्रीत की पिला दें<br><br> |
− | शक्ती भी शान्ती भी भक्तों के गीत में है<br> | + | शक्ती<ref>शक्ति</ref> भी शान्ती<ref>शांति</ref> भी भक्तों के गीत में है<br> |
− | धरती के वासियों की मुक्ती प्रीत में है<br><br> | + | धरती के वासियों की मुक्ती<ref>मुक्ति </ref> पिरीत<ref>प्रीत</ref> में है<br><br> |
13:28, 16 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
सच कह दूँ ऐ बिरहमन<ref>ब्राह्मण
</ref> गर तू बुरा न माने
तेरे सनमकदों के बुत हो गये पुराने
अपनों से बैर रखना तू ने बुतों से सीखा
जंग-ओ-जदल<ref>दंगा-फ़साद</ref> सिखाया वाइज़<ref>उपदेशक</ref> को भी ख़ुदा ने
तंग आके मैंने आख़िर दैर-ओ-हरम<ref>मंदिर-मस्जिद</ref> को छोड़ा
वाइज़ का वाज़<ref>उपदेश</ref> छोड़ा, छोड़े तेरे फ़साने
पत्थर की मूरतों में समझा है तू ख़ुदा है
ख़ाक-ए-वतन का मुझ को हर ज़र्रा देवता है
आ ग़ैरियत<ref>अपरिचय</ref> के पर्दे इक बार फिर उठा दें
बिछड़ों को फिर मिला दें नक़्श-ए-दुई मिटा दें
सूनी पड़ी हुई है मुद्दत से दिल की बस्ती
आ इक नया शिवाला इस देस में बना दें
दुनिया के तीरथों से ऊँचा हो अपना तीरथ
दामान-ए-आस्माँ से इस का कलस मिला दें
हर सुबह मिल के गायें मन्तर वो मीठे- मीठे
सारे पुजारियों को मय प्रीत की पिला दें
शक्ती<ref>शक्ति</ref> भी शान्ती<ref>शांति</ref> भी भक्तों के गीत में है
धरती के वासियों की मुक्ती<ref>मुक्ति </ref> पिरीत<ref>प्रीत</ref> में है