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"हकी़क़ते-हुस्न / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर

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शबाब सैर को आया था सोग़वार गया।<br/><br/>

20:41, 16 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण

ख़ुदा से हुस्न ने इक रोज़ ये सवाल किया
जहाँ में क्यों ना मुझे तुने लाज़वाल किया।

मिला जवाब के तस्वीरख़ाना है दुनिया
शबे-दराज़ अदम का फसाना है दुनिया।

है रंगे-तगय्युर से जब नमूद इसकी
वही हसीन है हक़ीकत ज़वाल है इसकी।

कहीं क़रीब था, ये गुफ्तगू क़मर ने सुनी
फ़लक पे आम हुवी, अख्तरे-सहर ने सुनी।

सहर ने तारे से सुनकर सुनायी शबनम को
फ़लक की बात बता दी ज़मीं के महरम को।

भर आये फूलके आँसू पयामे-शबनम से
कली का नन्हा-सा दिल खून हो गया ग़म से।

चमन से रोता हुवा मौसमे-बहार गया
शबाब सैर को आया था सोग़वार गया।