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"चलो इश्क़ नहीं चाहने की आदत है / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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चलो इश्क़ नहीं चाहने की आदत है
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चलो किइश्क़ नहीं चाहने की आदत है
के क्या करें हमें दू्सरे की आदत है
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करें क्या हम कि हमें दू्सरे की आदत है
  
तू अपनी शीशा-गरी का हुनर न कर ज़ाया
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तू अपनी शीशा-गरी का हुनर न कर ज़ाया<ref>व्यर्थ</ref>
 
मैं आईना हूँ मुझे टूटने की आदत है
 
मैं आईना हूँ मुझे टूटने की आदत है
  
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मैं क्या करूँ के तुझे देखने की आदत है
 
मैं क्या करूँ के तुझे देखने की आदत है
  
तेरे नसीब में ऐ दिल सदा कि मह्रूमी
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तेरे नसीब में ऐ दिल सदा की महरूमी<ref>वंचितता</ref>
ना वो सखी ना तुझे मांगने की आदत है
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वो सख़ी<ref>दानवीर</ref> न तुझे माँगने की आदत है
  
विसाल में भी वोही है फ़िराक़ का आलम
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विसाल<ref>मिलन</ref> में भी वो ही है फ़िराक़<ref>जुदाई</ref> का आलम
के उसको नींद मुझे रत-जगे की आदत है
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कि उसको नींद मुझे रत-जगे की आदत है
  
 
ये मुश्क़िलें हों तो कैसे रास्ते तय हों
 
ये मुश्क़िलें हों तो कैसे रास्ते तय हों
मैं ना सुबूर उसे सोचने की आदत है
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मैं ना-सुबूर<ref>ना-समझ</ref> उसे सोचने की आदत है
  
ये ख़ुद-अज़ियती कब तक "फ़राज़" तु भी उसे
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ये ख़ुद-अज़ियती कब तक "फ़राज़" तू भी उसे
ना याद कर जिसे भूलने की आदत है</poem>
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याद कर कि जिसे भूलने की आदत है
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21:47, 18 सितम्बर 2010 का अवतरण

चलो किइश्क़ नहीं चाहने की आदत है
करें क्या हम कि हमें दू्सरे की आदत है

तू अपनी शीशा-गरी का हुनर न कर ज़ाया<ref>व्यर्थ</ref>
मैं आईना हूँ मुझे टूटने की आदत है

मैं क्या कहूँ के मुझे सब्र क्यूँ नहीं आता
मैं क्या करूँ के तुझे देखने की आदत है

तेरे नसीब में ऐ दिल सदा की महरूमी<ref>वंचितता</ref>
न वो सख़ी<ref>दानवीर</ref> न तुझे माँगने की आदत है

विसाल<ref>मिलन</ref> में भी वो ही है फ़िराक़<ref>जुदाई</ref> का आलम
कि उसको नींद मुझे रत-जगे की आदत है

ये मुश्क़िलें हों तो कैसे रास्ते तय हों
मैं ना-सुबूर<ref>ना-समझ</ref> उसे सोचने की आदत है

ये ख़ुद-अज़ियती कब तक "फ़राज़" तू भी उसे
न याद कर कि जिसे भूलने की आदत है