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"आदत / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
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19:22, 23 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
सांस लेना भी कैसी आदत है
जिए जाना भी क्या रवायत है
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं है आँखों में
पावँ बेहिस हैं,चलते जाते हैं
इक सफ़र है जो बहता रहता है
कितने बरसों से कितनी सदियों से
जिए जाते हैं,जिए जाते हैं
आदतें भी अजीब होती हैं