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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : तुहमतें चन्द अपने ज़िम्मे धर चले<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[ख़्वाजा मीर दर्द]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शहरयार]]</td>
 
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तुहमतें चन्द अपने ज़िम्मे धर चले
+
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
किसलिए आये थे हम क्या कर चले 
+
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें
  
ज़िंदगी है या कोई तूफ़ान है
+
सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें
हम तो इस जीने के हाथों मर चले
+
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें
  
क्या हमें काम इन गुलों से ऐ सबा
+
याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से  
एक दम आए इधर, उधर चले
+
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें
  
दोस्तो देखा तमाशा याँ का बस
+
हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है
तुम रहो अब हम तो अपने घर चले
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अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें
 
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आह!बस जी मत जला तब जानिये
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जब कोई अफ़्सूँ तेरा उस पर चले
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शमअ की  मानिंद हम इस बज़्म में
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चश्मे-नम आये थे, दामन तर चले 
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ढूँढते हैं  आपसे  उसको  परे
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शैख़ साहिब छोड़ घर बाहर चले
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हम जहाँ में आये थे तन्हा वले
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साथ अपने अब उसे लेकर चले
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जूँ शरर ऐ हस्ती-ए-बेबूद याँ
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बारे हम भी अपनी बारी भर चले
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साक़िया याँ लग रहा है चल-चलाव,
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जब तलक बस चल सके साग़र चले
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'दर्द'कुछ मालूम है ये लोग सब
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किस तरफ से आये थे कीधर चले</pre>
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00:43, 25 सितम्बर 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें
  रचनाकार: शहरयार
ज़िन्दगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें 
ये ज़मीं चाँद से बेहतर नज़र आती है हमें 

सुर्ख़ फूलों से महक उठती हैं दिल की राहें 
दिन ढले यूँ तेरी आवाज़ बुलाती है हमें 

याद तेरी कभी दस्तक कभी सरगोशी से 
रात के पिछले पहर रोज़ जगाती है हमें 

हर मुलाक़ात का अंजाम जुदाई क्यूँ है 
अब तो हर वक़्त यही बात सताती है हमें