भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आँख से दूर न हो / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Bohra.sankalp (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा | + | आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा |
− | वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा | + | वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा |
− | इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी | + | इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी |
− | तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा | + | तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा |
− | तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे | + | तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे |
− | और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जाएगा | + | और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जाएगा |
− | + | किसी ख़ंज़र किसी तलवार को तक़्लीफ़ न दो | |
− | + | मरने वाला तो फ़क़त बात से मर जाएगा | |
− | डूबते-डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ | + | ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला |
− | मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा | + | तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा |
+ | |||
+ | डूबते-डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ | ||
+ | मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा | ||
ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का "फ़राज़" | ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का "फ़राज़" | ||
− | ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जाएगा | + | ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जाएगा |
</poem> | </poem> |
20:52, 26 सितम्बर 2010 के समय का अवतरण
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
वक़्त का क्या है गुज़रता है गुज़र जाएगा
इतना मानूस न हो ख़िल्वत-ए-ग़म से अपनी
तू कभी ख़ुद को भी देखेगा तो डर जाएगा
तुम सर-ए-राह-ए-वफ़ा देखते रह जाओगे
और वो बाम-ए-रफ़ाक़त से उतर जाएगा
किसी ख़ंज़र किसी तलवार को तक़्लीफ़ न दो
मरने वाला तो फ़क़त बात से मर जाएगा
ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जानेवाला
तेरी बख़्शीश तेरी दहलीज़ पे धर जाएगा
डूबते-डूबते कश्ती को उछाला दे दूँ
मैं नहीं कोई तो साहिल पे उतर जाएगा
ज़ब्त लाज़िम है मगर दुख है क़यामत का "फ़राज़"
ज़ालिम अब के भी न रोयेगा तो मर जाएगा